Tuesday, May 28, 2013

आदतें और अपेक्षाएं 

बचपन से ही अनेक बातों पे माँ की डांट खाता रहा हूँ। उनका पसंदीदा विषय था मेरा समय पर स्नान करना, जो की मैं कभी नहीं करता था आज अपने ऊपर ही हंसी आती है की कभी कभी माँ को परेशान करने के लिए ही नहीं नहाता था। मेरा एक विचार है कि मनुष्य की  ९९ % परेशानियों का कारण है व्यक्ति विशेष की आदतें और उसकी अपेक्षाएं। अनेक मिलते जुलते शब्द हैं। शुरुआत करते हैं आदत और नियम से.

आदत या नियम 
एक नियम आपको अनुशाषित करता है. एक आदत प्रकृति द्वारा आपको बाँधने का जरिया होता है. नियम कब आदत बन जाता है शायद पता ही नहीं चलता है. अपने अग्रजों को मैंने अपना जीवन नियमानुसार व्यतीत करते देखा है. उनका सूर्य से पहले उठना, स्नान करना, ध्यान करना, सात्विक भोजन, शारीरिक परिश्रम सभी कुछ नियमानुसार। लेकिन मेरे अनुसार ये नियम कब उनकी आदत बन गए शायद उन्हें भी पता नहीं चला। एक दिन अगर किसी भी कारण से स्नान नहीं किया तो पूरा दिन खराब हो जाएगा। मेरे विचार से नियम को आदत बनने से पहले तोडना आवश्यक है. अपने विचार से, अपने मन से एक दिन मत स्नान करें और देखें की कैसे आपका शरीर और मन इसे अपनाता है। अपने दैनिक कर्मों में से कोई दो ऐसे कार्यों को चुनिए जिनका आपस में कोई सम्बन्ध नहीं हो। ऐसा काम जिसको बिना किये आपके किसी दूसरे कार्य पर फर्क पड़ता है तो वो कार्य  आपकी आदत बन चुका है। हम अपने मन में दोनों कार्यों के बीच में सम्बन्ध बनाते रहते हैं और फिर सारा दोष आदत को जाता है
अपने एक परम मित्र से इसी विषय पर चर्चा हो रही थी। भाई के अनुसार किसी भी लक्ष्य को पाने के लिए नियम आवश्यक हैं। मैं भी पूरी तरह सहमत हूँ इस बात से। लेकिन एक बार आपने अपना लक्ष्य पा लिया उसके बाद उन नियमों का क्या जो अब आपकी आदत बन चुके हैं। यह विचार उस समय निरर्थक हो जाता है यदि आपको अपने जीवन का लक्ष्य पता है। आपको पता है की जीवन पर्यन्त आपको उसी एक लक्ष्य के पीछे एकाग्र होना है।